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सीतापुर नगर का परिचय
सीतापुर, उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय होने के साथ-साथ अवध क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो लखनऊ और शाहजहांपुर मार्ग के मध्य में, सरायन नदी के तट पर स्थित है।
सीतापुर जनपद धार्मिक सहिष्णुता और गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक रहा है। यह नगर सदैव सांस्कृतिक मेल-जोल और सामाजिक समरसता का उदाहरण प्रस्तुत करता रहा है।
प्रसिद्ध नेत्र चिकित्सा केंद्र
सीतापुर नगर में स्थित भारत का प्रसिद्ध नेत्र अस्पताल यहाँ की पहचान है। इसकी स्थापना विख्यात नेत्र चिकित्सक डॉ. महेश प्रसाद मेहरे द्वारा की गई थी। यह अस्पताल देशभर से आने वाले रोगियों के लिए सेवा का केंद्र है।
वाणिज्य एवं उद्योग
- सीतापुर एक प्रमुख गुड़, गल्ला और दरी की मंडी के रूप में प्रसिद्ध है।
- यहाँ तीन प्रमुख चीनी मिलें, चावल एवं आटा मिलें, तथा प्लाईवुड उद्योग भी कार्यरत हैं।
- नगर में एक सैनिक छावनी और उत्तर एवं पूर्वोत्तर रेलवे का जंक्शन स्थित है।
हस्तशिल्प एवं निर्यात
सीतापुर मुख्यतः सूती और ऊनी दरियों के लिए प्रसिद्ध है। विशेषकर लहरपुर और खैराबाद जैसे क्षेत्र इन दरियों के निर्माण और निर्यात के लिए विख्यात हैं। यहाँ उत्पादित दरियाँ न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अत्यधिक लोकप्रिय हैं।
यदि सीतापुर के प्राचीन इतिहास को देखा जाए, तो यह क्षेत्र गुप्त काल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से ओत-प्रोत रहा है। मनवाँ, हरगाँव, बड़ा गाँव और नसीराबाद जैसे स्थान पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ गुप्तकालीन मूर्तियाँ और स्थापत्य के अवशेष प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
प्रसिद्ध इतिहासकार विजयेन्द्र कुमार माथुर के अनुसार, सीतापुर ज़िले में स्थित हट, ऊजठ (AS, p.104) नामक स्थान से 9वीं शताब्दी के एक मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यहाँ विस्तृत खुदाई करवाई गई थी, जो इस क्षेत्र की समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दर्शाती है।
नैमिषारण्य और आध्यात्मिक परंपरा
नैमिषारण्य और मिसरिख सीतापुर के पवित्र तीर्थ स्थल हैं। ऐसा माना जाता है कि ऋषि वेदव्यास ने यहीं पर पुराणों की रचना की थी। हिन्दू परंपरा के अनुसार "पाँच धाम यात्रा" तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक नैमिषारण्य के दर्शन न कर लिए जाएँ। यह भूमि सूफियों एवं पैग़ंबरों की तपोभूमि रही है।
सूफी परंपरा और सामाजिक समरसता
हज़रत मखदूम साहब (खैराबाद) और हज़रत गुलज़ार शाह (बिसवां) की दरगाहें आज भी सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक हैं। यह ज़िला हिन्दू-मुस्लिम एकता का सजीव उदाहरण प्रस्तुत करता है।
मुस्लिम काल और युद्ध गाथाएँ
प्रारंभिक मुस्लिम काल के प्रमाण भग्न हिन्दू मंदिरों और मूर्तियों में देखने को मिलते हैं। शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित सड़कें और कुएँ इस युग के स्थापत्य उदाहरण हैं। इस काल की प्रमुख घटनाओं में खैराबाद के निकट हुमायूँ और शेरशाह का युद्ध तथा राजा सुहेलदेव और सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी के मध्य बिसवां और तंबौर क्षेत्र में हुए युद्ध उल्लेखनीय हैं।
खैराबाद और ब्रिटिश काल
खैराबाद, जो कभी मानसछत्र नामक तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध था, मुस्लिम काल में भी महत्वपूर्ण नगर रहा। ब्रिटिश शासन के दौरान 1856 में ज़िला मुख्यालय को खैराबाद से स्थानांतरित कर सीतापुर नगर बनाया गया।
तरीनपुर और स्वतंत्रता संग्राम
सीतापुर का तरीनपुर मोहल्ला एक प्राचीन स्थल है, जिसका मूल नाम "छीतापुर" था। इसका उल्लेख अकबरकालीन बंदोबस्त में "छितियापुर" के रूप में मिलता है। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी सीतापुर की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बाड़ी क्षेत्र के पास सर हीपग्रांट और फैजाबाद के मौलवियों के बीच निर्णायक युद्ध हुआ था।